मेरी माँ..

नये ज़माने के रंग में,
पुरानी सी लगती है जो|
आगे बढने वालों के बीच,
पिछङी सी लगती है जो|
गिर जाने पर मेरे,
दर्द से सिहर जाती है जो|
चश्मे के पीछे ,आँखें गढाए,
हर चेहरे में मुझे निहारती है जो|
खिङकी के पीछे ,टकटकी लगाए,
मेरा इन्तजार करती है जो|
सुई में धागा डालने के लिये,
हर बार मेरी मनुहार करती है जो|
तवे से उतरे हुए ,गरम फुल्कों में,
जाने कितना स्वाद भर देती है जो|
मुझे परदेस भेज ,अब याद करके,
कभी-कभी पलकें भिगा लेती है जो|
मेरी खुशियों का लवण,मेरे जीवन का सार,
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,मेरी आशाओं का आधार,
मेरी माँ, हाँ मेरी माँ ही तो है वो|














दिल छलक उट्ठा आँख भर आई
आज टी.वी. पर वो ख़बर आई

इन मसाइल में तेरी याद भी क्या
जैसे तितली पहाड़ पर आई

अपनी माँ की तरह उदास-उदास
बेटी शादी के बाद घर आई

अब तो मैं भी नज़र नहीं आता
या ख़ुदा कौन सी डगर आई

तुमने जो कुछ किया शराफ़त में
वो निदामत भी मेरे सर आई





















बिन उसके जिंदगी दर्द है तन्हाई है,
मेरी आंखों में क्यों रात सिमट आई है,
कहते है लोग इश्क को इबादत यारों,
इबादत में फिर क्यों रुसवाई है।

वो न आया तो दिल को लुभाने को मेरे,
शब्-ऐ-हिज्र में उसकी याद चली आई है,
महफिल में रह कर भी तनहा रहना,
ये अदा उसकी मोहब्बत ने सिखलाई है।

ये भी उसकी मोहब्बत की इनायत है यारों,
मैं तमाशा बना और दुनिया तमाशाई है,
इंतज़ार में किसी के न रात को बरबाद करना,
डूबते तारों ने मुझे बात यही समझाई है।
उससे तालुक ही कुछ ऐसा रहा है दोस्तों,
जब भी सोचा उसे आँख भर आई है।